Tuesday, December 31, 2013
Tuesday, November 12, 2013
Warmth
रात को बारिश हुई और ढेर सारी बूंदे यहाँ वहां गिरी ..अब धूप निकल आई है ताजी दम...कुंवारी धूप ! गीली मिट्टी के अन्दर धंसती हुई धूप अंकुरण करती हुई धूप मन की गीली मिट्टी में घुसती हुई धूप ..जीवन का संचारण करती धूप ..लगता है कोई मासूम जीवन अस्तित्व में आ रहा है..मन में कई पेड़ पौधे उगने वाले है ... जंगली पौधे! प्यार से भरी भरी धरनी, उस पर धूप का निराला रहस्यमयी आवरण ..गुदगुदा गया. अरे! यही तो वह है जिससे मैं बना हूँ... किसी ने कहा तुम जितने बाहर हो उतने ही अन्दर हो. तभीतो मुझे लगता है मैं उग रहा हूँ. कोपलें फूट रही हैं..
बरसात बीत रही है धूप झिझकते झिझकते निकल रही है…. नर्म धूप, आँच देती हुई. वातावरण के पोर पोर में पानी बादल बन कर समा गया था .अब धूप के मृदुल स्पर्श से ऐसा लग रहा है जैसे जीवन का प्रादुर्भाव हो रहा है स्पष्ट रूप से जीवन के संचार की अनुभूति हो रही है. नव जीवन का स्फुरण हो रहा है धूप की अठखेलियाँ चल रही हैं, और जो महक वातावरण में फ़ैल रही है उसे केवल अनुभूत किया जा सकता है, वह वर्णनातीत है
सुबह सुबह नदियों की सतह से भाप उठने लगी है. घास भी ओस से लदी हुई है-- एक दो बादल कुमार आकाश में विचरण करते रहते है ---दिन, महीने, वर्ष! यूँही भाप बन कर व्यर्थ उड़ते जा रहे हैं.कपूर की तरह हम जाने अनजाने में तिल तिल कर घटते जा रहे हैं. परन्तु दूसरी ओर आकाश में सुनहरे आवरण हिलते दिखाई देने लगे हैं. मन एक विशाल मंच बन गया है ... बिना किसी प्रयोजन के इतना सब नहीं होता है
Friday, October 18, 2013
मुखौटा अधिक सुन्दर है
यदि गंदा पानी सुवर्ण पात्र में भरा हो तो भी वह गंदा हे रहेगा
- अपनी गलतियों को सुंदरता का आवरण मत पहनाओ
Thursday, September 19, 2013
Saturday, August 31, 2013
The End of Season....with a promise to comeback
बारिश का पानी... बहता हुआ.. कलकल करता हुआ ... नन्ही नरम दूब पर से गुजरते हुए.
प्रसन्न आल्हादित शीतल स्वच्छ जल में दूब को जो अनुभूति होती है निरंतरता की.. परिपूर्णता की म्रदुल स्पर्श की.... प्रेम की ...आशीर्वाद की
- मुझे भी महसूस हो!
Thursday, August 15, 2013
Thursday, July 11, 2013
Music Sponsered by Him
मौन
अव्यक्त संगीत है,
सुन!
संगीत निरंतर चल रहा है,
थोडा मौन है,
कुछ कैद है -स्मृतियों में बसा है
-कौन सुन रहा है? सुनने का सुख तो नश्वर है.
जो कुछ तुम बोलना चाहते हो वह बोला जा चुका है
-अतः मौन रहना ही बेहतर है.
Friday, June 28, 2013
Wednesday, June 26, 2013
Rains
बादलो की देहरी पर खडी होकर, बादलों की फटन के झरोखों से नभ सुंदरियां स्वर्ग से झाँख कर अपनी सांवली छटा दिखला रही हैं. बादल धरा पर पाँव टिकाते टिकाते चल रहे हैं.
Sunday, June 9, 2013
Sunday, May 26, 2013
Sunday, May 5, 2013
Saturday, May 4, 2013
Saturday, March 9, 2013
वसंत
मैं रोकता रहा वसंत को
बच निकला फरफराती हवाओं से
अनदेखी करता रहा
फुनगियों की दस्तक को
अनसुनी कर गया चहचहाहट
ढूँढता रहा बंद कमरे में
वासंती आनंद
और,
एक और,
निराला वसंत निकल गया
ठिठक गई कोपलें
विस्फारित आसमान
हवाओं को मिला
खुला मैदान
जी भर दौडने का आह्वान
धूल चाट रही थी पत्तियाँ
नाचने लगी, बेजान!
वसंत!
तुम आये बन कर
कंजूस के घर मेहमान !
Wednesday, March 6, 2013
Tuesday, February 26, 2013
Monday, February 11, 2013
Rituraaj
वसंत आया
हर शाख लदी
टेसू फूली
फूला उपवन
फूलों की क्यारी में
अंकुर फूटे
अमराई बौराई
कोयल स्वर गूंजे
धरती की थाल सजी
संध्या के दीप जले
पवन चली मद मस्त
मार्ग सब सुथरे सुथरे
पर मेरे कमरे के उस कोने में
गुलदस्ते के फूल
भले
ऋतुएँ बदली
मौसम बदले
चुप मौन धरे
स्थित प्रज्ञ योगी
मेरे कमरे के फूल!
"पलाश फूले
पवन झकोरे
सुवास फ़ैली....."
Wednesday, January 30, 2013
Sunday, January 13, 2013
Some Thoughts
· विवशताएँ असुविधाओं पर हावी रहती हैं.
· विश्वास सदैव स्वतंत्रता की बलि ले लेता है
· चिकने घड़े पर पानी टिकना भी नहीं चाहिए!
· तुम शब्दों के उच्चारण में डूबे हो, और मैं शब्दों के अर्थों में, भला मेरी बात तुम्हें कैसे समझ आएगी ?
· तुम्हे पैसा प्यारा है और मुझे मनुष्य की अच्छाइयां - हमारी तो रस्साकशी भी नहीं हो सकती!
· जो राहों पर ही नहीं चलते उनकी राह देखना व्यर्थ है.
· हम अपनी दिशाएं कब खोजेंगे?
· काश हम पेट की भूख मिटाने की तरह दिमाग की भूख मिटाने के लिए तत्पर रहते!
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