Tuesday, November 12, 2013

Warmth


रात को बारिश हुई और ढेर सारी बूंदे   यहाँ वहां  गिरी ..अब धूप निकल आई है ताजी दम...कुंवारी धूप ! गीली मिट्टी के अन्दर धंसती हुई धूप अंकुरण करती हुई धूप मन की गीली मिट्टी में घुसती हुई धूप ..जीवन का संचारण करती धूप ..लगता है कोई मासूम जीवन अस्तित्व में आ रहा है..मन में कई पेड़ पौधे उगने वाले है ... जंगली पौधे! प्यार से भरी भरी धरनी, उस पर धूप का निराला रहस्यमयी आवरण ..गुदगुदा गया. अरे! यही तो वह है जिससे मैं बना हूँ... किसी ने कहा तुम जितने बाहर हो उतने ही अन्दर हो. तभीतो मुझे लगता है मैं उग रहा हूँ.  कोपलें फूट रही हैं.. 
बरसात बीत रही  है धूप झिझकते झिझकते निकल   रही है….  नर्म धूप, आँच देती हुई. वातावरण  के पोर पोर में पानी बादल बन कर समा गया था .अब धूप के मृदुल स्पर्श से ऐसा लग रहा है जैसे जीवन का प्रादुर्भाव हो रहा है स्पष्ट  रूप से जीवन के संचार की अनुभूति हो रही है. नव जीवन का स्फुरण  हो रहा है धूप की अठखेलियाँ चल रही हैं, और जो महक वातावरण में फ़ैल रही है उसे केवल अनुभूत किया जा सकता है, वह वर्णनातीत है
सुबह सुबह नदियों की सतह से भाप उठने लगी है. घास भी ओस से लदी हुई  है--  एक दो बादल कुमार   आकाश में विचरण करते रहते  है  ---दिन, महीने वर्ष! यूँही भाप बन कर व्यर्थ उड़ते जा रहे हैं.कपूर की तरह हम जाने अनजाने में तिल तिल कर घटते जा रहे हैं. परन्तु दूसरी ओर आकाश में सुनहरे आवरण हिलते दिखाई देने लगे हैं. मन एक विशाल मंच बन गया है ... बिना किसी प्रयोजन   के इतना सब नहीं होता है

Friday, October 18, 2013

Breeze of Transit Winter

मुखौटा अधिक सुन्दर है

 यदि गंदा पानी सुवर्ण पात्र में भरा हो तो भी वह गंदा हे रहेगा                                                            
 अपनी गलतियों को सुंदरता का आवरण मत पहनाओ  


Saturday, August 31, 2013

The End of Season....with a promise to comeback

बारिश का पानी... बहता हुआ.. कलकल करता हुआ ... नन्ही नरम दूब पर से  गुजरते   हुए.
  प्रसन्न आल्हादित  शीतल स्वच्छ जल में दूब को जो अनुभूति होती है  निरंतरता की.. परिपूर्णता की म्रदुल स्पर्श की.... प्रेम की ...आशीर्वाद की 
 - मुझे भी महसूस   हो!   

 

Thursday, August 15, 2013

LOST

राह भूला हुआ
आगे चलने से,
डर रहा   
सोचता रहा
'कहीं गुम न हो जाऊं'

LOVE IS FOR EVER

Thursday, July 11, 2013

Music Sponsered by Him

मौन 
अव्यक्त संगीत है,
 सुन!
संगीत निरंतर चल रहा है,
थोडा मौन है,
कुछ कैद है -स्मृतियों में बसा है
-कौन सुन रहा है? सुनने का सुख तो नश्वर है. 
जो कुछ तुम बोलना चाहते हो वह बोला जा चुका है
-अतः मौन रहना ही  बेहतर है.

Wednesday, June 26, 2013

Rains

बादलो की देहरी पर खडी होकर, बादलों की फटन के झरोखों से  नभ सुंदरियां स्वर्ग से झाँख कर अपनी सांवली छटा दिखला   रही हैं. बादल धरा पर पाँव टिकाते टिकाते चल रहे हैं.

Sunday, June 9, 2013

Ecological Balance...!

कांटेदार पौधों को केवल इतना सींचो ताकि पर्यावरण सुरक्षित रहे

Sunday, May 26, 2013

Degree of difficulty

चन्दन के पेड़ काटना आसान है, कांटेदार वृक्षों   को काटना भी बहुत कठिन है

Sunday, May 5, 2013

Memories

सचमुच !
खुशियों का ठिकाना नहीं होता
       होती कहीं और हैं
       चली जाती कहीं और

Saturday, March 9, 2013

वसंत

मैं रोकता रहा वसंत को
बच निकला फरफराती हवाओं से
अनदेखी करता रहा
फुनगियों की दस्तक को
अनसुनी कर गया चहचहाहट
ढूँढता रहा बंद कमरे में
वासंती आनंद
और,
एक और,
निराला वसंत निकल गया

ठिठक गई कोपलें
विस्फारित आसमान
हवाओं को मिला
खुला मैदान
जी भर दौडने का  आह्वान
धूल चाट रही थी पत्तियाँ
नाचने लगी, बेजान!
वसंत!
तुम   आये बन कर
कंजूस के घर मेहमान !  

Tuesday, February 26, 2013

Spring

वसंत में
होठ
सूखे पत्तो की तरह 
खडखडाते   हैं, जैसे
टूटन का दर्द लिए 
उतरी हुई मुस्कान! 

Monday, February 11, 2013

Rituraaj

वसंत आया
हर शाख लदी
टेसू फूली
फूला उपवन
फूलों की क्यारी में
अंकुर फूटे
अमराई बौराई
कोयल स्वर गूंजे
धरती की थाल सजी
संध्या के दीप जले
पवन चली मद मस्त
मार्ग सब सुथरे सुथरे
पर मेरे कमरे के उस कोने में
गुलदस्ते के फूल
भले
ऋतुएँ बदली
मौसम बदले
चुप मौन धरे
स्थित प्रज्ञ   योगी
मेरे कमरे के फूल!
"पलाश फूले
पवन झकोरे
सुवास फ़ैली....."

Sunday, January 13, 2013

Some Thoughts

·         विवशताएँ असुविधाओं पर हावी रहती हैं.

·         विश्वास सदैव स्वतंत्रता की बलि ले लेता है

·         चिकने घड़े पर पानी टिकना भी नहीं चाहिए!

·         तुम शब्दों के उच्चारण में डूबे हो, और मैं शब्दों के अर्थों में, भला मेरी बात तुम्हें कैसे समझ आएगी ?

·         तुम्हे पैसा प्यारा है और मुझे मनुष्य की अच्छाइयां - हमारी तो रस्साकशी भी नहीं हो सकती!

·         जो राहों पर ही नहीं चलते उनकी राह देखना व्यर्थ है. 
·         हम अपनी दिशाएं कब खोजेंगे

·         काश हम पेट की भूख मिटाने की तरह दिमाग की भूख मिटाने के लिए तत्पर रहते!