वसंत आया
हर शाख लदी
टेसू फूली
फूला उपवन
फूलों की क्यारी में
अंकुर फूटे
अमराई बौराई
कोयल स्वर गूंजे
धरती की थाल सजी
संध्या के दीप जले
पवन चली मद मस्त
मार्ग सब सुथरे सुथरे
पर मेरे कमरे के उस कोने में
गुलदस्ते के फूल
भले
ऋतुएँ बदली
मौसम बदले
चुप मौन धरे
स्थित प्रज्ञ योगी
मेरे कमरे के फूल!
"पलाश फूले
पवन झकोरे
सुवास फ़ैली....."
बसंत का बहुत उम्दा शब्दों में चित्रण किया है। साधुवाद।
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