रात को बारिश हुई और ढेर सारी बूंदे यहाँ वहां गिरी ..अब धूप निकल आई है ताजी दम...कुंवारी धूप ! गीली मिट्टी के अन्दर धंसती हुई धूप अंकुरण करती हुई धूप मन की गीली मिट्टी में घुसती हुई धूप ..जीवन का संचारण करती धूप ..लगता है कोई मासूम जीवन अस्तित्व में आ रहा है..मन में कई पेड़ पौधे उगने वाले है ... जंगली पौधे! प्यार से भरी भरी धरनी, उस पर धूप का निराला रहस्यमयी आवरण ..गुदगुदा गया. अरे! यही तो वह है जिससे मैं बना हूँ... किसी ने कहा तुम जितने बाहर हो उतने ही अन्दर हो. तभीतो मुझे लगता है मैं उग रहा हूँ. कोपलें फूट रही हैं..
बरसात बीत रही है धूप झिझकते झिझकते निकल रही है…. नर्म धूप, आँच देती हुई. वातावरण के पोर पोर में पानी बादल बन कर समा गया था .अब धूप के मृदुल स्पर्श से ऐसा लग रहा है जैसे जीवन का प्रादुर्भाव हो रहा है स्पष्ट रूप से जीवन के संचार की अनुभूति हो रही है. नव जीवन का स्फुरण हो रहा है धूप की अठखेलियाँ चल रही हैं, और जो महक वातावरण में फ़ैल रही है उसे केवल अनुभूत किया जा सकता है, वह वर्णनातीत है
सुबह सुबह नदियों की सतह से भाप उठने लगी है. घास भी ओस से लदी हुई है-- एक दो बादल कुमार आकाश में विचरण करते रहते है ---दिन, महीने, वर्ष! यूँही भाप बन कर व्यर्थ उड़ते जा रहे हैं.कपूर की तरह हम जाने अनजाने में तिल तिल कर घटते जा रहे हैं. परन्तु दूसरी ओर आकाश में सुनहरे आवरण हिलते दिखाई देने लगे हैं. मन एक विशाल मंच बन गया है ... बिना किसी प्रयोजन के इतना सब नहीं होता है
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