Saturday, May 3, 2014

Jay Ho!


खोखली वाणी में 'जय हिंद' गूँज रहा है मन अभावों में अटका हुआ है, सरकार हमारे पैसे खर्च कर उसकी   उपलब्धि गिना रही है  जनता उनकी 'जय' के नारे लगा रही ..शायद कुछ दिन का भोजन मिल जायगा . रेगिस्तान में भी कायदे होते है जीने के लिए ..'जय' बुलवाने के त्यौहार का दिन है  

1 comment:

  1. ये भारतीय लोकतंत्र के लिए अभिशाप ही है कि ऐसे भ्रष्ट राजनेताओं के हाथों में हमारे देश की बागडोर है , जो निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु आम आदमी को अपनी कठपुतली बना कर अपना उल्लू सीधा करते हैं ! गरीब, आम आदमी जीने के लिए उनके हर कायदे का पालन करने की कोशिश करता है ! कटु यथार्थ का चित्रण कर दिया आपने !

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