प्रकृति बादलों के सफ़ेद आँचल से सहला रही है नर्म आँच फिर अच्छी लगाने लगी है
जो कुछ रुका हुआ था, जम सा गया था पिघल रहा है बह निकला है, जड़ता चैतन्य में परिवर्तित हो रही है. धूप अच्छी लगने लगी है
कितनी कविताएं बह निकली होगीं इस अश्रु धारा के साथ साथ ...
प्रकृति सदा ही मनुष्य के भावुक और संवेदनशील ह्रदय को अपनी ओर आकृष्ट करती रही है ! हमेशा कवियों और साहित्यकारों को प्रकृति के मनोरम दृश्यों से ही प्रेरणा मिलती रही है ! नीले अम्बर में घिरते श्वेत -श्याम बादल , मंद -मंद प्रवाहित समीर , उफनते सागर की लहरें , कल -कल बहती नदियां , हरी -भरी धानी धरती , चाँद -सूरज-तारे ----ये सब मानव के मन में गीत ,संगीत और काव्य को उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं ! आपकी अभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावी और उम्दा है !
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