राष्ट्रपति प्रसन्न है, अशोक चक्र प्रदान कर रहे हैं एक शूरवीर की असमय विधवा को ..जिसके चेहर पर वेदना है पीड़ा है जो उसने झेली है.. उसने झेली थी. जो नहीं रहा- उसे उस मर्मान्तक दृश्य की बार बार याद दिलाई जाती है, कम से कम पंद्रह बार पूर्वाभ्यास भी करना पडा होगा .. बेचारी ... गर्व का दिन पीडाओं को और गहरी कर गया
कैसी विडंबना है ! कृत्रिम औपचारिकताओं के बोझ तले सिसकती वेदना ! किसीकी पीड़ा दूसरों के लिए केवल एक उत्सव .. एक शानदार कार्यक्रम बन जाता है !
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