Wednesday, May 9, 2012

Breeze

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घुलती हुई, छेड़खानी करती हवा-वातास! हवा केवल हवा नहीं, संचय है  पूरे वर्ष का जो अब बह निकला है. सुराखों में घुस गई परेशान  हवा. इसकी सिसकियाँ कौन सुने? हवा  तेरा उद्गम कहाँ हैपेड़ों से निकली   या पेड़ों में से निकली? हवाओं का भी कोई भविष्य है? कभी इस गलियारे कभी उस गलियारे. और गलियारे की भी कोई जगह है? कभी इस आँगन कभी उस आँगन! आँगनो का ही क्या....कभी इस घर में तो कभी उस घर में ....और घर भी क्या घर है जिसमे दरवाजे न हों और वे दरवाजे   आँगन में खुलते हों!
दरवाजे आने के लिए होते हैं या जाने के लिए?
हवाओं की शहनाई . झुरझुरी थरथराई, आगाह कर गई

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