Reflections
Sunday, August 26, 2012
Un known journey!
बस में सवार
….
... कांच के सहारे
,
बाहर देखती हुई
,
बाहर जाने को उत्सुक
... एक फंसी हुई
मक्खी
की तरह
पराधीन
..
किंकर्तव्य
विमूढ़
..
हम रास्तों
की
खोज में
,
बस के वेग
के साथ अनजाने ही
,
बिना
टिकट
गंतव्य
की ओर ले जाए जा
रहे
हैं
.
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