धरती पर
आकाश में
तुम्हारे मेरे
बीच में
कितनी कवितायेँ बिखरी पडी हैं?
उगने दो इन्हें
उगालो इन्हें
शब्दों के,
अर्थों के
वस्त्र इन्हें पहनाओ
छूलो इन्हें
महसूस करो
घटने दो इन्हें
संवार कर रखो
नई कोंपलें सुनेगी
खिलेंगी
लहलहाती रहेंगी ...
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