Tuesday, June 28, 2016
Wednesday, June 15, 2016
कविता
धरती पर
आकाश में
तुम्हारे मेरे
बीच में
कितनी कवितायेँ बिखरी पडी हैं?
उगने दो इन्हें
उगालो इन्हें
शब्दों के,
अर्थों के
वस्त्र इन्हें पहनाओ
छूलो इन्हें
महसूस करो
घटने दो इन्हें
संवार कर रखो
नई कोंपलें सुनेगी
खिलेंगी
लहलहाती रहेंगी ...
Sunday, June 12, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)