रात का तीसरा पहर
- अंधी हवा गुदगुदाने लगी है! शरीर कपड़ों को चाहने लगा है, ओस चुपचाप उतर रही है -मुंह दिखाई के लिए॰ मैदान भी
ओस ओढ़ कर सो रहे हैं. और ब्रम्हचारी दिनों का तप निस्तेज होने वाला है ... यह लो! घूमने के दिन आगये
- अतिथि दिन - मन कभी इधर, कभी
उधर - पता
ही नहीं चलता कि
कहाँ घूम आया है यह मन !
No comments:
Post a Comment