Monday, October 20, 2014

अतिथि मन

रात का तीसरा पहर - अंधी हवा गुदगुदाने लगी है! शरीर कपड़ों को चाहने लगा है, ओस चुपचाप उतर रही है -मुंह दिखाई के लिए॰  मैदान भी ओस ओढ़ कर सो रहे हैं. और ब्रम्हचारी दिनों का तप निस्तेज होने वाला है ... यह लो! घूमने के दिन आगये - अतिथि दिन - मन कभी इधर, कभी उधर -  पता ही नहीं चलता कि कहाँ घूम आया है यह मन !

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