प्रकृति बादलों के सफ़ेद आँचल से सहला रही है नर्म आँच फिर अच्छी लगाने लगी है
जो कुछ रुका हुआ था, जम सा गया था पिघल रहा है बह निकला है, जड़ता चैतन्य में परिवर्तित हो रही है. धूप अच्छी लगने लगी है
कितनी कविताएं बह निकली होगीं इस अश्रु धारा के साथ साथ ...