Thursday, March 6, 2014

Sun

प्रकृति बादलों के सफ़ेद आँचल से सहला रही है नर्म आँच फिर अच्छी लगाने लगी है

जो कुछ रुका हुआ था, जम सा गया था पिघल रहा है  बह निकला है, जड़ता  चैतन्य में परिवर्तित हो रही है. धूप अच्छी लगने लगी है


कितनी कविताएं बह निकली होगीं इस अश्रु धारा के साथ साथ ...

Waiting for her beloved


waing for beloved