Monday, February 3, 2014

Vasant -14

सुना  है वसन्त आ गया है
मै ढूँढने निकल पडा, कही दिखाई नहीं दिया. शायद ऋतुराज होने के नाते साधारण लोगो से नहीं मिलता होगा! यह एक रिवाज होगा या कोई मजबूरी होगी - साधारण मनुष्य भी कितना साधारण कर दिया गया है...
वासंती हवाओं की तलाश में निकला था ---हवाइयां मिली चेहेरों पर! हरी हरी दूब से पटे हुए बड़े बड़े लान उस पर दौड़ते हुए रंग बिरंगे परिधानों में लिपटे शरीर,  क्यारियों में तरतीब से उगाये हुए फूल,   वसंत को करीने से प्रदर्शन के लिए लाया गया है.  पोस्टरों में वसंत उमड़ रहा है. आखिर वसंत को भी मनाना पड़ता है, मनाना चाहिए-  ऊपर से आर्डर है. 
फूल कुछ कहते हुए से क्यों नहीं लगते? पेड़ आमंत्रण क्यों नहीं देते? दूब दुलारती क्यों नहीं? वे रस भरी हवाएं कहाँ गयीं? वे हवाएं जो टेसुओ के इर्द गिर्द भागती फिरती है, मादक रस से भरे फूलों पर मंडराते हुए भंवरों के पंखो से चलती हैं, क्यों नहीं हैं यहाँ?