Wednesday, May 4, 2011

The problem of paternalistic organization is that it assumes that you can not teach your father how   to develop child!

Sunday, May 1, 2011

पक्षी तुम स्वतंत्र हो  
पक्षी तुम स्वच्छंद हो
हम मानते हैं कि तुम स्वच्छंद हो
उन्मुक्त हो कर फैलना चाहते हो - निस्सीम?
फैलाव स्वयं एक सीमा है. परन्तु तुम्हे उन्मुक्त समझते   हैं.
ये सीमाएं फैलाव की हम तुम्हे प्रदान करते हैं.
हम तुम्हें एक खिड़की भर आकाश उपलब्ध नहीं करा सकते
लो! पिंजरा हमने खोल दिया है
..... तो यह डोर क्यों?”
यह डोर नहीं! तुम्हारी अपनी क्षमता है -
यह डोर नहीं, आभार है, प्रतीक है, कर्त्तव्य है
आखिर पिंजरे का भी अधिकार है तुम पर!
पिंजरा अनुभूतियों का है
यह लगाव है तुम्हारा- अतीत के प्रति
विश्वास करो - तुम्हारी उड़ान डोर से अधिक लम्बी नहीं है
तुम्हारे पंख जाने पहचाने हैं - हमने अपने हाथों से ही तो इन्हें बनाया था!   
हम भला तुम्हे  क्यों बांधेंगे? तुम्हारा मोह ही उत्तरदायी है.
पिंजरा तुम्हारी पीड़ा समझता है - इसलिए  द्वार खुले रखे हैं.
हम सलाखे हैं - जड़ हैं, निर्बोध हैं, निरपेक्ष हैं
डोर तुम्हारी भाषा समझती है
तुम बंधे ही रहो इसीमें मंगल है, यही स्वच्छंदता है
यह पराजय नहीं. पराजय तो परों की बुनावट है 
जिसे हमने परिश्रम पूर्वक बुना है.
हम सब तुम्हारे सुख के भागीदार हैं
तुम्हारी उड़ानों के साक्षी हैं
तुम्हे इस अनबूझ स्वतन्त्रता पर बधाई देने आये हैं
डोर, पिंजरा और हाथ हम ही हैं
हम तुम्हारी सुरक्षा, शान्ति और सुख की कामना करते हैं.
हमारा अस्तित्व मात्र तुम्हारी स्वतन्त्रता का द्योतक है
हम जानते हैं कि तुम हमें कभी नहीं भूलोगे
तुम्हारी उड़ानों में हमारी समीकरण खो चुकी है
"समाधान चाहिए?"
यह कैसी आवाज है? किसकी आवाज है?
उन्मुक्तता की? बन्धनों की? संबंधों   की?
आओ हल खोजें
हल - महज एक उड़ान है परिचित ओरछोर  की!